आज की वैश्विक स्थिति में यह कहना ज़रा सा भी अतिशयोक्ति नहीं होगा के पैसा दुनिया को बनाता और चलाता हैं। राष्ट्र, जाती या मज़हब — यह सारे भूखंड और तेल यानि पेट्रोलियम का भंडार के आधार पर बंटा हुआ है। ज़ाहिर सी बात यह हैं के इंसान आज सबसे ज़्यादा भरोसा कागज़ का एक आयताकार टुकड़े पे करता हैं, जिसे अंग्रेजी में मनी और हमारी ज़ुबान पे पैसा कहते है। दुनिया भर में इसे कहीं डॉलर, कहीं पाउंड, यूरो या रुपैया के नाम से जाना जाता है। हैरत की बात यह हैं की यह पैसा आज इंसान के लिए सबसे प्रभावी प्रेरक और उसे एकजुट करनेवाला घटक हैं। पैसा आज उन सारे समाजों में समर्थ और प्रतिष्ठा का एक विशिष्ट सूचक बन चूका हैं जिनके भाषाएं, रहनसहन,संस्कृति और जीवनशैली बिलकुल ही एक दूसरे से अलग हैं। शायद इसी से पता चलता हैं के यह सर्वव्यापी महामारी के समय में क्यूँ इसका अर्थनैतिक परिणाम, इंसान के जानोमाल का नुकसान से भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता हैं।
पर अगर आप सोचे तो आपके समझ में आएगा के वैसे इस पैसों का अपने आप में कोई मूल्यों नहीं हैं। यह सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा या धातु का एक चकती या फिर किसी स्क्रीन पर दिखनेवाला एक संख्या भर हैं। यह तो इंसान ही हैं जो की इसकी कीमत को तय करता हैं और वह इसे कायम रखता हैं, लेनदेन का एक जरिया या आर्थिक नापतोल का एक इकाई बनकर, धन-दौलत का एक भंडार के रूप में अपने आप को प्रतिष्ठित करके।
आइये हम इस पैसा नाम की चीज़ का विवर्तन के इतिहास को ज़रा जानने व समझने की कोशिश करें।
लेनदेन या विनिमय :
जबसे इंसान एकजुट होकर साथ रहने लगे, वह एक दूसरे से जरूरी चीज़ों का लेनदेन चलाता रहा अपने बीच। एक आदमी कुछ मछलियों के बदले में धान या गेंहू लेता रहा, जबतक उसे एक दूसरा आदमी मिल जाता जो की इस विनिमय को तैयार हो जाता या उसके लिए भी इसकी जरूरत होती थी। परन्तु यह लेनदेन या विनिमय तब ही हो पाता था, जब दो आदमी का मांग मेल खाता था। पहला आदमी को चाहिए कुछ धान या गेंहू जिसके बदले में वह मछली देने को तैयार था। दूसरा आदमी को मछली नहीं चाहिए था, बल्कि कुछ मकई या चने की जरूरत थी उसको। ऐसी स्थिति में यह लेनदेन संभव नहीं होता था। जबतक पहला आदमी को कोई मछली लेनेवाला मिल जाता, तब तक हो सकता हफ़्तों बीत जाते और वह मछली ही खाने लायक न रहे जातें। इस तरह की समस्याएं अक्सर आ सकती हैं इस विनिमय की प्रक्रिया में।
सोना या उस तरह की कोई और मूल्यवान बस्तुयों का इस्तेमाल :
इसके लिए कोई तीसरी बस्तु की जरूरत होती थी जो की सठिक मूल्य की हो, ताकी आदमी को किसी लम्बी चौरी विनिमय प्रक्रिया से गुज़ारना न पड़े। इसके लिए विनिमययोग्य एक ऐसी वास्तु होनी चाहिए जो की टिकाऊ, वाहन करनेलायक और आसानी से मिलनेवाला न हो या मुश्किल से ही प्राप्त किया जा सके। अतीत में इंसान इस तरह की लेनदेन की लिए कई तरह की बस्तुएं, यथा सोना, नमक, सामुद्रिक प्राणी की खोल या आवरण या फिर लाइम स्टोन आदि खनिज पदार्थ क़े टुकड़े भी इस्तेमाल करते थे।
जैसे जैसे इंसान संख्या में बढ़ता गया, और अच्छे से बसता गया, शहरों का स्थापना किया और खेती-बारी करने लगा, यह लेनदेन या विनिमय प्रक्रिया की सहूलियत ख़तम होने लगा और धातु क़े टुकड़े मुद्रा क़े रूप में इस्तेमाल होना भी मुश्किल से खाली न रहा। इस मोड़ पे पहुंच कर इंसान को एक सांकेतिक या प्रतिकी मुद्रा की ज़रुरत भी ज़्यादा से ज़्यादा महसूस होने लगी।
प्रतिकी मुद्रा :
चीनी और लिडियन लोगों क़े साथ प्राचीन भारतवर्ष क़े लोग धातु से बना हुआ मुद्राओं का इस्तेमाल करनेवाले सबसे पहला इंसान हुआ करता था। ईसापूर्व लगभग छेसौ साल पहले भारतीय समाज में पंच किया हुआ धातव मुद्राएं इस्तेमाल होने का प्रमाण मिला हैं। ऐसे सिक्के सिर्फ वह प्राधिकारी बनवाते थे जिनपर प्रदेश या राज्यों का शाशन का भी अधिकार हुआ करता था। यह अक्सर उस जगह का सम्राट या अधिप होते थे। यह किसी मुद्रा का सबसे ज़्यादा भरोसेमंद और विश्वासयोग्य रूप था एवं सत्रहवाँ सदी तक यूरोप महादेश में भी इस तरह क़े मुद्राएं इस्तेमाल में था। परन्तु मुद्रा क़े इस रूप क़े साथ एक नया जोखिम भी प्राधिकरण को महसूस होने लगा।
हम सब ने दिल्ली क़े सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुग़लक़ की कहानी सुनी हैं और हमें यह भी पाता चला क़े उनके शाशनकाल में धातव मुद्राओं का क्या हाल हुआ था और उन्हें किस तरह की भयानक बर्बादी का सामना करना पढ़ा था। सुल्तान अधिक मात्रा में सोना और चांदी जुटाने में नाकाम रहे और नतीजन शाशन को मज़बूरी में इन कीमती धातुओं की जगह तांबा और पीतल का इस्तेमाल करना पढ़ा सिक्के बनवाने में। इन सिक्कों की बनावट बहोत ही आसान थी और इनमे कोई सरकारी मुहर भी नहीं लगी होती थी। इस वजय से असाधु और तस्कर वरी आसानी से जाली या नकली सिक्के भरी मात्रा में खुद बनाके बाजार में चलने लगे। देखते देखते कुछ ही दिनों में भयंकर मुद्रास्फीति देखने मिला और आर्थिक हालात भी बेहद बर्बादी की ओर तेज फिसलने लगी।
कागज़ क़े मुद्राएं :
पैसों का प्रचलन और प्रसारण में पहले की नाकामयाबी से सबक मिलने क़े बाद ही कागज़ से बना हुआ मुद्राओं की विचार इंसान क़े दिमाग में जगह लेने लगा। दुनियाभर में अपना साम्राज्यवादी विस्तार करनेवाले ताकतें जो कई अर्थनैतिक ब्यबस्थाओं को एक ही जत्थे में लाएं, उनसे भी इस विचार को जोरदार एक बढ़ावा मिला। कागज़ क़े नोट प्रतिकी या सांकेतिक मुद्राओं का ही एक विकल्प था जो की आगे चलकर ‘Fiat Money’ में बदल गया। Fiat एक लैटिन शब्द हैं जिसका अर्थ ‘इसे करने दो’ (Let it be done)। इस तरह से सरकार या शाशन क़े द्वारा पैसों की एक कीमत तय की गयी एक विज्ञप्ति या वचन क़े ज़रिये, एक प्रबर्तनीय Legal Tender को स्वीकार करके। इससे यह पक्का होता हैं क़े इस लीगल टेंडर मनी को इंकार करके किसी दूसरा किस्म का भुगतान का तरीका अपनाना क़ानूनन जुर्म साबित होता हैं।
इलेक्ट्रॉनिक भुगतान :
डिजिटल ज़माने में पैसों के कोई नए और अभिनव तारा के रूप भी प्रचलित हुए। उदहारण के तौर पे कहा जा सकता हैं — मोबाइल मनी और अप्रत्यक्ष एवं आभासी करेंस। इनका उपयोग से रोकड़ा या कॅश की ज़रुरत काफी हद तक लुप्त या रद्द हो जाती हैं। इस तरह के मुद्राओं का प्रचलन से डेबिट व क्रेडिट कार्ड, पेमेंट गेटवे आदि पैसा हस्तांतरण के काम आते है।
क्रिप्टोकोर्रेंसी :
मनुष्य की अग्रगति इस बात पे आधारित हैं की एक सिस्टम में समस्याओं को शिनाख्त करो, उनको सुलझाने का उपाय निकालो और उसपर सफलता से अमल करो। इससे पहले उल्लिखित फ़िएट मनी को उपयोग में लाने के लिए एक तीसरा पक्ष या थर्ड पार्टी की ज़रुरत होती हैं जो के अकसर एक फ़ेडरल या केंद्रीय बैंक होता हैं। यह मानबीय भूल त्रुटि और नैतिक या मानवीय सम्बंधित समझौते से परे नहीं हैं। सन 2008 में विश्वव्यापी जो आर्थिक संकट का उदय हुआ था उसके बाद से यह विचार की ‘बैंक इतना बड़ा एक संगठन हैं जिसमे कभी कोई चूक या पतन हो ही नहीं सकता’ — इसपर से लोगों का भरोसा या विश्वास गायब होने लगा। इस मोहभंग व मायूसी से ही सन 2009 में बिटकॉइन की धरना जन्म लेती हैं। इसपर सातोशी नाकामोतो (छद्मनाम) द्वारा क्रिप्टोकोर्रेंसी के वर्णन में लिखित एवं प्रकाशित श्वेतपत्र भी एक गहरा असर डालता हैं।
आर्थिक क्षेत्रों में बिटकॉइन की प्रस्तावना अप्रत्यक्ष या वर्चुअल करेंसी की धारणा को अगले स्तर पर ले जाती हैं और इसके साथ ही क्रिप्टोग्राफ़ी नाम का एक नवीनतम व अत्याधुनिक तकनिकी व्यवहार में आता हैं। क्रिप्टोकोर्रेंसी का इस्तेमाल में मुलभुत व प्रमुक रीति (मैकेनिज्म) यह हैं की इसके तमाम सौदे को ब्लॉकचेन नामका एक लेजर पे दर्ज होते हैं, जिसकी पहुँच सिस्टम के सारे यूजर या प्रयोगकर्ता को प्राप्त रहती हैं। विकेन्द्रीकृत एक प्राधिकरण द्वारा निष्पादित यह गतिविधि इस बात की भी प्रतिश्रुति देता हैं की इसके व्यावहार से उपवक्ताओं को ऑनलाइन विनिमय से खर्च होनेवाला रकम से काफी कम शुल्क देना पड़ेगा। आज की तारीख में दुनिया में तीन हज़ार से भी ज़्यादा क्रिप्टोकोर्रेंसी प्रचलन में हैं। पैसों का खेल में आगे रहने के लिए वर्तमान में क्रिप्टोकोर्रेंसी की जानकारी होना बेहद जरूरी हैं। खेल की शुरुआत के लिए आज ही हमारे द्वारा ऑफर किया गया विभिन्न मनोहर कोर्स/प्रोग्राम में से एक को चुने और उसमे एनरोल करें। यह सारे कोर्स हमारे विशेषज्ञ Unoversity नामक एक प्लेटफार्म पर ऑफर करते हैं।